भूली बातों से भी अब दिल को लगाना कैसा राह जो छोड़ चुके फिर वहाँ जाना कैसा अक़्ल और इश्क़ का बाहम ये मिलाना कैसा आप पहलू में हैं फिर होश में आना कैसा तार-ए-दामन से उलझती रही उलझन मेरी कैसी बे-चारगी दामन का बढ़ाना कैसा परखे ही जाने का एहसान लिए फिरता हूँ कैसी मक़बूलियत और दिल में समाना कैसा धूप हाथों पे मलें रंग-ए-हिनाई देखें ख़्वाब ही ख़्वाब हैं ख़्वाबों का ठिकाना कैसा काँच के टुकड़े ही आँखों की अमानत ठहरे कैसी ता'बीरें यहाँ ख़्वाब का आना कैसा घाव गिनते में ही गुज़री है यहाँ तो 'फ़रहत' क्या ग़म-ए-दोस्ताँ मरहम का लगाना कैसा