ख़याल-ओ-ख़्वाब की दुनिया नहीं संजोने का उधार माँग के रुस्वा न अब के होने का कोई तो आएगा सुर्ख़ी का ऐब बतलाने लहू के दाग़ भी चेहरे से अब न धोने का मोहब्बतों में मोहब्बत की कोई आस न रख ये कारोबार तो पाने का है न खोने का बिछड़ते वक़्त जो तल्क़ीन भी न कर पाया फिर उस की याद में आँचल नहीं भिगोने का लो देख लो वही साहिल पे आ के डूबे हैं जिन्हें था शौक़ बहुत कश्तियाँ डुबोने का वो हम कि नींदों को आँखों से दूर कर डाला तुम्हें ख़याल रहा ओढ़ने बिछौने का