भूलने वाले से कोई कह दे ज़रा इस तरह याद आने से क्या फ़ाएदा जब मिरे दिल की दुनिया बसाते नहीं फिर ख़यालों में आने से क्या फ़ाएदा चार तिनके जलाने से क्या मिल गया मिट सका न ज़माने से मेरा निशाँ मुझ पे बिजली गिराओ तो जानें सही आशियाँ पर गिराने से क्या फ़ाएदा क्या कहूँ आप से कितनी उम्मीद थी आप क्या बदले दुनिया बदल सी गई आसरा दे के दिल तोड़ते हैं मिरा इस तरह से सताने से क्या फ़ाएदा तुम ने मूसा को नाहक़ ही तकलीफ़ दी लुत्फ़ आता अगर याद करते हमें जिन की आँखों में ताब-ए-नज़ारा न हो उन को जल्वा दिखाने से क्या फ़ाएदा पहले दिल को बुराई से कर पाक तू फिर ख़ुलूस-अक़ीदत से कर जुस्तुजू ऐसे सज्दों से अल्लाह मिलता नहीं हर जगह सर झुकाने से क्या फ़ाएदा लाख समझाया तुझ को मगर ऐ 'शमीम' तेरी हुश्यारी आख़िर न काम आ सकी आँख मिलती गई राज़ खुलते गए अब हक़ीक़त छुपाने से क्या फ़ाएदा