फ़िक्र मुझे गुलज़ारों की है मौला ख़ैर बारिश तो अंगारों की है मौला ख़ैर दुश्मन तो दुख देने में नाकाम हुए बारी अब ग़म-ख़्वारों की है मौला ख़ैर उलझ रहे हैं सारे मसीहा आपस में फ़िक्र किसे बीमारों की है मौला ख़ैर दीवाना गुल-दस्ते ले कर फिरता है मश्क़ जहाँ तलवारों की है मौला ख़ैर लोगों के कंधों पर सर क्यों क़ाएम हैं फ़िक्र यही सालारों की है मौला ख़ैर तेल से 'फ़रहत' आग बुझाने निकले हैं अक़्ल अजब सालारों की है मौला ख़ैर