बीच महफ़िल के अकेला कर दिया ऐ तग़ाफ़ुल तू ने ये क्या कर दिया राह का हर नक़्श धुँदला कर दिया तू ने क्या ऐ उम्र-ए-रफ़्ता कर दिया मैं कहाँ तन्हा था जब तन्हा था मैं तू ने आ कर मुझ को तन्हा कर दिया वक़्त के मरहम ने दिल के ज़ख़्म को भरते भरते और गहरा कर दिया ये तो 'तारिक़' इक तमाशा-गाह है किस ने इस का नाम दुनिया कर दिया