बिछड़ के भी न मोहब्बत में कुछ कमी आई वो जब भी रोया मिरी आँख में नमी आई अब इस मक़ाम पे पहुँची है शाइ'री मेरी कि शाइ'रों के भी लब पे ग़ज़ल मिरी आई अभी तो दूर हो शोहरत की भी रसाई से अभी से आप के तेवर में कजरवी आई तुम्हारे ज़िक्र से दिल की छुटी है तारीकी तुम्हारे ध्यान से आँखों में रौशनी आई कटे कटे हुए रहते हैं अब मिरे मुझ से मिरे मक़ाम में 'कशफ़ी' जो बरतरी आई