बिछा हुआ कोई तन्हाइयों का जाल न था तिरे फ़िराक़ से पहले ये घर का हाल न था थके तो यूँ कि हमें आरज़ू थी साए की सऊबतों से सफ़र की बदन निढाल न था कुछ ऐसे मोड़ पे बिछड़े थे हम मोहब्बत में मुझे भी रंज उसे भी कोई मलाल न था निगाह तू ने किसी और ही पे की होती जो हम शिकस्ता दिलों का तुझे ख़याल न था कभी कभी कोई बादल बरस भी जाता था ज़मीन-ए-शहर का इतना बुरा तो हाल न था छुपा हुआ मिरा दुश्मन था ख़ुद मिरे अंदर सो अपने-आप से बचने का कुछ सवाल न था गए दिनों का तुझे ध्यान तक नहीं 'ख़ावर' तिरा वो इश्क़ यही है जिसे ज़वाल न था