बिछड़ के उन के हम इस एहतिमाल से भी गए बयान-ए-ग़म से गए अर्ज़-ए-हाल से भी गए थी जिन की याद से रौशन ख़याल की दुनिया वो ऐसे रूठे बिसात-ए-ख़याल से भी गए निगाहें मिलने से मुमकिन है प्यार आ जाए हम उन की बज़्म में कुछ इस ख़याल से भी गए उन्हों ने आ के कोई हाल तक नहीं पूछा बनावटी ही सही इंदिमाल से भी गए दिल उन को दे के बहुत मुतमइन हुए हम भी कि रोज़ रोज़ की अब देख-भाल से भी गए निगाह-ए-लुत्फ़ नहीं तो निगाह-ए-क़हर सही सितम तो ये है हम इस एहतिमाल से भी गए वो आए चीं-ब-जबीं इस लिए सर-ए-महफ़िल हम उन से अब तो जवाब-ओ-सवाल से भी गए दिल इक पियाला था मिट्टी का वो भी टूट गया निगाह मिलते ही जाम-ए-सिफ़ाल से भी गए ख़ुदा पे छोड़ के ऐ 'मौज' कश्ती-ए-उल्फ़त सुकून पा गए फ़िक्र-ए-मआल से भी गए