बिगड़ कर अदू से दिखाते हैं आप बनावट की बातें बनाते हैं आप बढ़ाने को क़िस्से शब-ए-वस्ल में फ़साने अदू के सुनाते हैं आप किसी को तजल्ली किसी को जवाब अजब कुछ लगाते-बुझाते हैं आप बिगड़ने के अस्बाब लाज़िम नहीं नई बात दिल से बनाते हैं आप न आना था गर आए क्यूँ ख़्वाब में मगर सोते फ़ित्ने जगाते हैं आप बंधे क्या किसी से उम्मीद-ए-विसाल नज़र से नज़र कब मिलाते हैं आप