हवा-ए-सुब्ह-ए-नुमू दुश्मन-ए-चमन कैसे शिकार-ए-रश्क-ओ-रक़ाबत गुल-ओ-समन कैसे हिसार-ए-शाम-ओ-सहर और ज़ब्त-ए-अहल-ए-नफ़स निज़ाम-ए-जब्र में बेबस ये मर्द-ओ-ज़न कैसे न कोई बात हुई और न कोई दिल ही दुखा बुझे बुझे से ये शुराका-ए-अंजुमन कैसे न कोई हाथ उठा और न कोई ज़ेर हुआ तो फिर बताओ कि ये चाक पैरहन कैसे खुले तो किस पे खुले रंग-ए-ए'तिबार-ए-सुख़न ये साहिबान-ए-नज़र बद-गुमान-ए-फ़न कैसे