बिगड़ी हुई जब होती है तक़दीर किसी की काम आती नहीं ऐसे में तदबीर किसी की दिल जीत लिए अपनों के बेगानों के पल में गुफ़्तार में ऐसी भी है तासीर किसी की ये फ़ातेह-ए-अक़्लीम तो हो सकती है लेकिन दिल जीत न पाई कभी शमशीर किसी की तहज़ीब-ओ-तमद्दुन का चलन उठ गया शायद करता है कहाँ अब कोई तौक़ीर किसी की अल्लाह रे ये अद्ल ये मीज़ान-ए-अदालत पाता है सज़ा कोई है तक़्सीर किसी की सोए हैं अभी अहल-ए-जुनूँ क़ैद-ए-क़फ़स में पैरों में खनकती नहीं ज़ंजीर किसी की हर लब पे फ़क़त अम्न की बातें हों ख़ुदाया हो वजह-ए-फ़सादात न तक़रीर किसी की ये हुस्न का ए'जाज़ है या नश्शा-ए-मय है साग़र में उतर आई है तस्वीर किसी की शोहरत की तमन्ना है तो कर जेहद-ए-मुसलसल 'अहसन' यूँही होती नहीं तश्हीर किसी की