दिल में ईमान तो है जज़्बा-ए-ईमाँ न सही हम मुसलमान तो हैं शान-ए-मुसलमाँ न सही रब की रहमत का सहारा ही हमें काफ़ी है आज दुनिया में कोई अपना निगहबाँ न सही तीन सौ तेरह ने ये बद्र में पैग़ाम दिया अज़्म-ओ-ईमान है तो जंग का सामाँ न सही हम तो हैं आज भी तज़ईन-ए-गुलिस्ताँ में शरीक अपने हाथों में नहीं नज़्म-ए-गुलिस्ताँ न सही असलहों की मिरे क़ातिल को ज़रूरत क्या है तीर-ए-मिज़्गाँ है बहुत ख़ंजर-ओ-पैकाँ न सही मैं ने पलकों पे सजा रक्खे हैं अश्कों के चराग़ मेरे टूटे हुए छप्पर में चराग़ाँ न सही माल-ओ-ज़र पास नहीं तोशा-ए-उल्फ़त के सिवा कोई सामान तो है ज़ीस्त का सामाँ न सही आज की शब किसी भूके की ज़ियाफ़त कर दे घर में तेरे नहीं 'अहसन' कोई मेहमाँ न सही