बिगड़ी हुई है देखिए तश्कील ज़ीस्त की हालत पे सर-ब-दस्त हैं जिबरील ज़ीस्त की आ जा रही है साँस बड़ी मुश्किलात से जल बुझ रही है रात से क़िंदील ज़ीस्त की वो लम्हा-ए-क़ज़ा जो अधूरा करे मुझे जब चाहता है करता है तकमील ज़ीस्त की रौनक़ थी जिन की वज्ह से वो हंस मर गए ख़ाली पड़ी है सत्ह पे अब झील ज़ीस्त की इक मुख़्तसर सा क़िस्सा सुनाता हूँ लो सुनो तम्हीद में ही बाँध के तफ़्सील ज़ीस्त की