चश्म तर होती है जब ज़िक्र तिरा होता है हूक उठती है तो कुछ दर्द सिवा होता है क़तरा दरिया से जुदा हो के हवा होता है हिज्र की ताब न लाया वो फ़ना होता है रास आया न कभी हम को तबीबों का इलाज जितनी पीता हूँ दवा दर्द सिवा होता है जब है आग़ाज़-ए-मोहब्बत में ही ऐसी हालत हाल अब देखिए अंजाम में क्या होता है तेरी भी चाल से उठते हैं हज़ारों फ़ित्ने मेरे नालों से अगर हश्र बपा होता है बेबसी पर मुझे रोना भी नदामत भी है किस बुरे वक़्त में ज़ालिम तू जुदा होता है बे-वफ़ाओं की नज़र कुछ मेरी तक़दीर नहीं वो नज़र फेर लें सौ मर्तबा क्या होता है माना यकता-ए-ज़माना हो मगर क्यों साहिब हुस्न होने से भला गोई ख़ुदा होता है क्यों ख़फ़ा हो गए इक ज़िक्र-ए-सितम ही तो था दोस्तों ही में तो ऐ जान गिला होता है ऐसी ठंडी हवा बरसात की रुत देख ज़रा ऐसी हालत में कहाँ कोई जुदा होता है राज़ क्या है जो उन्हें आज मोहब्बत उट्ठी है तो कुछ बात जो ये उज़्र-ए-जफ़ा होता है हश्र में वादा-ए-दीदार तो कुछ ठीक नहीं आज दिखलाने में सूरत उन्हें क्या होता है रिंद-ए-मय-नोश है 'दीवान' ख़ुदा का बंदा मत बुरा कह उसे क्यों मुफ़्त बुरा होता है