बिजली कड़की बादल गरजा मैं ख़ामोश रहा इस कोहराम में भी ऐ दुनिया मैं ख़ामोश रहा सुब्ह की चाप ने मुझ को सदा दी मैं ने बात न की शाम की चुप ने मुझ को पुकारा मैं ख़ामोश रहा कितने गीत बिखेरते मौसम मेरे सामने आए मैं था जाती रुत का साया मैं ख़ामोश रहा गुज़रे मेरे पास से हो कर शोर भरे मेले सैल-ए-हवादिस तू ने देखा मैं ख़ामोश रहा कितने पानी सर से गुज़रे मेरी ज़बाँ न खुली साहिल साहिल दरिया दरिया मैं ख़ामोश रहा 'जाफ़र' देख के ग़म बरसाती ज़िंदगियों के समय बीत गई इस दिल पर क्या क्या मैं ख़ामोश रहा