बिखेरे ज़ुल्फ़ रुख़ पर कौन ये बाला-ए-बाम आया ख़यालों की फ़ज़ा महकी बहारों का पयाम आया मिज़ाज-ए-यार में जब भी ख़याल-ए-इंतिक़ाम आया सर-ए-फ़िहरिस्त अपना ही गुनहगारों में नाम आया अजब हंगामा देखा हम ने साक़ी तेरी महफ़िल में कोई तिश्ना-दहन उट्ठा कोई छलका के जाम आया गिराँ-कोशी में अफ़राज़ी तन-आसानी में पामाली मशक़्क़त सुरख़-रू उट्ठी तसाहुल ज़ेर-ए-दाम आया ज़ुहूर-ए-सैर-चश्मी ही दलील-ए-कामरानी है मिरा पिंदार-ए-ना-आसूदगी ही मेरे काम आया ये मिस्रा दे दिया इक़बाल का किस शोख़-फ़ितरत ने समंद फ़िक्र के आगे 'ज़िया' मुश्किल मक़ाम आया