बिखरे जब ख़्वाब तो हालात ने रोने न दिया उम्र भर ग़ैरत-ए-जज़्बात ने रोने न दिया राह पुर-ख़ार थी फूलों से रविश सज न सकी फिर भी दुश्वारी-ए-हालात ने रोने न दिया गो कि रुख़्सत हुई सत-रंग धनक आप के साथ हिज्र की रात में बरसात ने रोने न दिया थे वो बेबस सितम-ए-दहर पे जो रोते रहे दिल था पुर-अज़्म तो सदमात ने रोने न दिया दिल शिकस्ता थे मगर हौसला रखते थे 'किरन' इश्क़ में ग़म की रिवायात ने रोने न दिया