दिल में इक हलचल मची है आज-कल बे-ख़ुदी ही बे-ख़ुदी है आज-कल आँखें जैसे जाम हों छलके हुए माँग तारों से सजी है आज-कल फ़िक्र-ए-मुस्तक़बिल न है माज़ी का ग़म हाल में गुम ज़िंदगी है आज-कल चार जानिब रंग ख़ुशबू शायरी आप से वाबस्तगी है आज-कल तोड़ कर तारे फ़लक से लाए कौन चाँद से महफ़िल सजी है आज-कल रात कुछ जुगनू चुरा कर लाई थी सुब्ह से जाँ पर बनी है आज-कल