बीमार-ए-मोहब्बत की दवा और ही कुछ है कुछ और ही समझे थे हुआ और ही कुछ है 'आज़ाद' की तहरीर का अंदाज़ अलग है 'इक़बाल' के नग़्मों की नवा और ही कुछ है इस अहद में हर-सम्त है इक आलम-ए-महशर है दिल में जो इक हश्र बपा और ही कुछ है बे-सूद क़फ़स में है हर आसाइश-ए-दुनिया पर्वाज़ को आज़ाद फ़ज़ा और ही कुछ है जज़्बात में इख़्लास से बढ़ कर नहीं कुछ भी बे-लौस मोहब्बत का मज़ा और ही कुछ है फ़न-पारे में है पास-ए-रिवायत भी ज़रूरी तहरीर का उस्लूब नया और ही कुछ है है कर्ब का एहसास जो जीने नहीं देता ना-कर्दा गुनाही की सज़ा और ही कुछ है ज़ाहिद की रिया-कार इबादत से है अफ़ज़ल अल्लाह के बंदों का भला और ही कुछ है सीरत में है जो हुस्न वो सूरत में नहीं है पाकीज़गी-ओ-शर्म-ओ-हया और ही कुछ है बे-मौत भी मरने पे वो कर देता है मजबूर नज़रों में है जो तेज़ क़ज़ा और ही कुछ है महदूद है शाहों की गदाओं पे नवाज़िश बंदों पे ये इनआ'म-ए-ख़ुदा और ही कुछ है यूँ तो हैं मशाहीर-ए-सुख़न शोहरा-ए-आफ़ाक़ 'बर्क़ी' की अलग तर्ज़-ए-अदा और ही कुछ है