बिन पिए इक ख़ुमार था क्या था तेरा चेहरा बहार था क्या था वो रह-ए-इश्क़ में जुनूँ अपना दिल जो तुझ पर निसार था क्या था वो मिरा वहम या हक़ीक़त थी तेरी नज़रों में प्यार था क्या था बज़्म में तेरी मेहरबाँ थे बहुत मेरा उन में शुमार था क्या था वक़्त-ए-रुख़्सत किसी की आँखों में छाया कैसा ग़ुबार था क्या था वो भी रोया था दर्द-ए-फ़ुर्क़त में लग रहा अश्क-बार था क्या था तेरे दिल में सदा खटकता रहा बद-गुमानी का ख़ार था क्या था कर के फिर मेरे ए'तिबार का ख़ून जो गया है वो यार था क्या था हम थे उलझन में आप भी चुप थे कौन सर पर सवार था क्या था मैं तो मर कर भी मुंतज़िर ही रही वो तिरा इंतिज़ार था क्या था