दे गए ज़ख़्म मिरे चाहने वाले मुझ को आज तन्हा हूँ बहुत कोई सँभाले मुझ को डूबने वाले को तिनके का सहारा भी बहुत कोई ऐसा हो कि आ कर जो बचा ले मुझ को वो जो कहते थे कि जीवन की ख़ुशी हो तुम ही कर गए आज वही ग़म के हवाले मुझ को दिल-ए-सद-चाक को वो ख़ार से करता है रफ़ू हाए ये बख़िया-गरी मार न डाले मुझ को एक मुद्दत से मैं ख़ुद से भी हूँ रूठी रूठी ऐ मिरी जान कभी आ के मना ले मुझ को है सफ़र दश्त का मुश्किल तो मगर हिम्मत कर हौसला देने लगे पाँव के छाले मुझ को याद आती है मुझे माँ की वो ममता अक्सर लाड से जब वो खिलाती थी निवाले मुझ को