ग़ैर-मुमकिन भी है मुमकिन मुझे मा'लूम न था एक दिन आएगा ये दिन मुझे मा'लूम न था और कुछ मैं तिरे ज़ाहिर से समझता था तुझे और कुछ है तिरा बातिन मुझे मा'लूम न था अपने दामान-ए-तसन्नो' में छुपा सकते हैं उन मआइब को महासिन मुझे मा'लूम न था दुश्मनी के लिए मख़्सूस है जो तर्ज़-ए-अमल दोस्ती में है वो मुमकिन मुझे मा'लूम न था आह हो सकती है बेदाद पे माइल वो नज़र हो जो अल्ताफ़ की ज़ामिन मुझे मा'लूम न था उम्र-भर सब्र न आएगा मुझे जिस के बग़ैर चैन पाएगा वो मुझ बिन मुझे मा'लूम न था बाहमा गर्मी-ए-दिल नब्ज़-ए-मोहब्बत इक दिन हो के रह जाएगी साकिन मुझे मा'लूम न था आह इस उम्र-ए-मोहब्बत में कभी ऐ 'बिस्मिल' एक दिन आएगा ये दिन मुझे मा'लूम न था