बीते दिनों की तू अगर तहरीर लिख अपने क़लम से वक़्त की तक़दीर लिख महदूद मा'नी में सिमट कर रह कभी जब फैल जाए तो कोई तफ़्सीर लिख महरूम आँखों से भी हो तो पढ़ ले ख़त तारीक शब पर इस तरह तनवीर लिख दश्त-ओ-बयाबाँ में नहीं तो छोड़ दे या मेरे ख़्वाबों की कोई ता'बीर लिख आवाज़ के साए में बे आवाज़ हूँ 'इक़बाल' 'ग़ालिब' और न मुझ को 'मीर' लिख इस साल क्या है बर्फ़-बारी का ग़ज़ब डल झील हो या गुलशन-ए-कश्मीर लिख आज़ाद हो कर भी मुक़य्यद हूँ 'ज़फ़र' जो तोड़ दे ज़िंदाँ को वो ज़ंजीर लिख