रातें वो दिल-फ़रेब बहारें वो ख़्वाब की पीरी में याद आई हैं बातें शबाब की रिंदों की बज़्म और बुराई शराब की वाइज़ ने अपनी आप ही मिट्टी ख़राब की यूँ धज्जियाँ उड़ाईं नज़र ने नक़ाब की तनवीर छन रही है रुख़-ए-पुर-हिजाब की शबनम दिखा रही है झलक इंक़लाब की मौजें सुना रही हैं कहानी हबाब की ग़ुंचों को गुदगुदा के जगाया नसीम ने फूलों से खेलती है किरन आफ़्ताब की पीर-ए-मुग़ाँ के ज़र्फ़ पे हर्फ़ आ रहा है आज ख़ाली दिखा रहा है सुराही शबाब की दिल का लगाओ दिल से नज़र का नज़र से है हाजत सवाल की न ज़रूरत जवाब की अपना तरीक़ 'ज़ब्त' ज़माने से है जुदा फ़िक्र-ए-अज़ाब है न तमन्ना सवाब की