बीते हुए दिनों की हलावत कहाँ से लाएँ इक मीठे मीठे दर्द की राहत कहाँ से लाएँ ढूँडें कहाँ वो नाला-ए-शब-ताब का जमाल आह-ए-सहर-गही की सबाहत कहाँ से लाएँ समझाएँ कैसे दिल की नज़ाकत का माजरा ख़ामोशी-ए-नज़र की ख़िताबत कहाँ से लाएँ तर्क-ए-तअल्लुक़ात का हो जिस से एहतिमाल बेबाकियों में इतनी सदाक़त कहाँ से लाएँ अफ़्सुर्दगी-ए-ज़ब्त-ए-अलम आज भी सही लेकिन नशात-ए-ज़ब्त-ए-मसर्रत कहाँ से लाएँ हर फ़त्ह के ग़ुरूर में बे-वजह बे-सबब एहसाह-ए-इन्फ़िआल-ए-हज़ीमत कहाँ से लाएँ आसूदगी-ए-लुत्फ़-ओ-इनायत के साथ साथ दिल में दबी दबी सी क़यामत कहाँ से लाएँ वो जोश-ए-इज़्तिराब पे कुछ सोचने के बाद हैरत कहाँ से लाएँ नदामत कहाँ से लाएँ हर लहज़ा ताज़ा ताज़ा बलाओं का सामना ना-आज़मूदा-कार की जुरअत कहाँ से लाएँ है आज भी निगाह-ए-मोहब्बत की आरज़ू पर ऐसी इक निगाह की क़ीमत कहाँ से लाएँ सब कुछ नसीब हो भी तो ऐ शोरिश-ए-हयात तुझ से नज़र चुराने की आदत कहाँ से लाएँ