जवानी मगर इस क़दर मस्तियाँ शब-ओ-रोज़ शाम-ओ-सहर मस्तियाँ न दिल में ज़रा भी नदामत हुई मचाते रहे रात भर मस्तियाँ हवाओं में लौ थरथराती रही उधर थी हया और इधर मस्तियाँ हवस-कारियों को मसर्रत न कह मोहब्बत में इतनी न कर मस्तियाँ जवानी गँवाते हैं जो ज़ोहद में बुढ़ापे में करते हैं ख़र मस्तियाँ कभी ख़ल्वतों में तकल्लुफ़ बहम कभी हैं सर-ए-रहगुज़र मस्तियाँ बड़ी मुश्किलों से शब-ए-एहतियात जो गुज़री तो पिछले पहर मस्तियाँ वहीं दोस्ती है जहाँ इश्क़ है जिधर ख़्वारियाँ हैं उधर मस्तियाँ अदाओं को उल्फ़त समझता है तू नहीं ऐ मिरे बे-ख़बर मस्तियाँ सवाबों से उन का सही फ़ासला गुनाहों से हैं दूर-तर मस्तियाँ यहाँ हिकमतें भी उतरती रहीं उछलती रही हैं अगर मस्तियाँ पियापे तिरे नाम पर गर्दिशें दमा-दम तिरे नाम पर मस्तियाँ कोई काम 'सय्यद' ने छोड़ा नहीं कमालात सैर-ओ-सफ़र मस्तियाँ