ब-क़द्र-ए-हसरत-ए-दिल ज़ुल्म भी ढाना नहीं आता वो क्या तस्कीन देंगे जिन को तड़पाना नहीं आता बका-ए-जावेदाँ के राज़ से वाक़िफ़ नहीं ऐ दिल जिन्हें राह-ए-वफ़ा में ख़ाक हो जाना नहीं आता बदलते रहिए उनवाँ शरह-ए-रूदाद-ए-मोहब्बत के किसी सूरत तमामी पर ये अफ़्साना नहीं आता गिरा दे क़स्र-ए-इस्तिब्दाद जो इक नारा-ए-हू से नज़र ऐसा कोई भी आज दीवाना नहीं आता