ब-क़द्र-ए-शौक़ नहीं लुत्फ़-ए-महफ़िल-आराई शदीद-तर है सर-ए-बज़्म अपनी तन्हाई कहाँ वो शो'ला-नवाई कहाँ ये ख़ामोशी बदल गए हैं ज़माने कि तेरे सौदाई मिरी फ़ुग़ाँ को तो समझेंगे लोग मेरा जुनूँ तिरा सुकूत न बन जाए वज्ह-ए-रुस्वाई सदफ़ सदफ़ है शिकार-ए-तलातुम-ए-दरिया किसी गुहर में तो पैदा हो शान-ए-यकताई न फ़िक्र-ओ-होश न क़ल्ब-ओ-नज़र न ज़र्फ़-ओ-ज़मीर नया जहाँ है नई ख़ुसरवी-ओ-दाराई चराग़-ए-राह-ए-मोहब्बत थी ख़ाक-ए-अहल-ए-वफ़ा क़दम क़दम पे 'करम' रौशनी नज़र आई