ब-ख़ुदा इश्क़ का आज़ार बुरा होता है रोग चाहत का बुरा प्यार बुरा होता है जाँ पे आ बनती है जब कोई हसीं बनता है हाए माशूक़-ए-तरहदार बुरा होता है ये वो काँटा है निकलता नहीं चुभ कर दिल से ख़लिश-ए-इश्क़ का आज़ार बुरा होता है टूट पड़ता है फ़लक सर पे शब-ए-फ़ुर्क़त में शिकवा-ए-चर्ख़-ए-सितमगार बुरा होता है आ ही जाती है हसीनों पे तबीअत नासेह सच तो ये है कि दिल-ए-ज़ार बुरा होता है