ब-नाम-ए-पैकर-ख़ाकी न गर्द बन जाओ मियान-ए-शहर न सहरा-नवर्द बन जाओ बगूला बन के उठो बैठ जाओ बन के ग़ुबार बिखर के हासिल-ए-सहरा-ए-गर्द बन जाओ है इज्तिमा-ए-अनासिर से ज़िंदगी की नुमूद और इक़्तज़ा-ए-क़ज़ा फ़र्द फ़र्द बन जाओ रग-ए-हयात को गर्माओ गर्मी-ए-ख़ूँ से ये क्या कि वक़्त-ए-अमल जिस्म-ए-सर्द बन जाओ निगार-ख़ाना-ए-हस्ती का साथ दो 'रौनक़' ख़ुशी के सामने तस्वीर-ए-दर्द बन जाओ