आज़ार-ए-दिल से रंग-ए-तबीअ'त बदल गया आख़िर दिमाग़ फ़िक्र-ए-मुसलसल से चल गया जल्वा हज़ार पर्दों में छुपता नहीं कभी ताब-ए-रुख़-ए-निगार से घूँघट ही जल गया दा'वा करूँगा दावर-ए-महशर के सामने दुनिया से मेरी तेरी कशाकश का हल गया अफ़्कार तेरे हुस्न की जादूगरी सनम हर शे'र तेरी ज़ुल्फ़ की ख़ुशबू में ढल गया कल ज़िंदगी से अपनी कुछ ऐसे ख़फ़ा था मैं तुम ने ये समझा सीने से अरमाँ निकल गया आवारगी ले जाए है जाने कहाँ कहाँ निकला मैं सहरा से जूँही सू-ए-जबल गया उठता है दर्द पहलू में गोया नहीं है दिल जादू किसी की शोख़ निगाहों का चल गया हैं बुल-हवस हज़ारों कोई अहल-ए-दिल नहीं अब रस्म-ए-आशिक़ी से भी हुस्न-ए-अमल गया दाइम शब-ए-फ़िराक़ में शोले से इश्क़ के मिस्ल-ए-चराग़ दाग़-ए-दिल-ए-ख़स्ता जल गया क्या उस के जी में आई कि मुद्दत के बा'द यार खुलने लगा था हम से व-लेकिन सँभल गया आशुफ़्तगी से मेरे दिल-ए-ना-तवाँ का हाल बिगड़ा ख़ुदाया ऐसा मिरा दम निकल गया फ़रियाद-ए-शो'ला-बार ने क्या क्या ग़ज़ब किए जावें कहाँ 'जलाली' चमन सारा जल गया