बोझ इतना है मेरे शाने पर मैं कि मजबूर हूँ उठाने पर दोस्तो मुझ से हो गए बरहम बे-बसर आइना दिखाने पर अब उड़ूँगा मैं अपनी हिम्मत से लग गए हैं मुझे ज़माने पर बच के निकला था जो कभी मुझ से आ गया है मिरे निशाने पर आ भी जाएँगे ज़ेर-ए-दाम आख़िर ये जो आते हैं एक दाने पर इक नज़र है तिरे तआ'क़ुब में इक नज़र है मिरी ज़माने पर घर बनाया था और निय्यत से आ गया हूँ मैं अब जलाने पर दुनिया आएगी बाद मरने के हम फ़क़ीरों के आस्ताने पर रफ़्ता रफ़्ता अब आ गई 'तन्हा' ज़िंदगी मौत के दहाने पर