बोल सकते हैं मगर बात नहीं कर सकते वक़्त ऐसा है सवालात नहीं कर सकते फेसबुक का भी तअ'ल्लुक़ है तअ'ल्लुक़ कैसा देख सकते हैं मुलाक़ात नहीं कर सकते इतना गहरा है यहाँ कुंज-ए-ख़ुराफ़ात का शोर लोग अब तरफ़ा मुनाजात नहीं कर सकते उड़ तो जाएँ शजर-ए-ख़ाम के ज़िंदाँ से हम दोस्त है दोस्त से हम हाथ नहीं कर सकते इतना सफ़्फ़ाक है एहसास का मंज़र-नामा लोग अंदाज़ा-ए-सदमात नहीं कर सकते क्या ये कम सदमा है दो तरफ़ा मुलाक़ात के बीच बोल सकते हैं मगर बात नहीं कर सकते बस कोई दुख है जिस बार नुमू करना है जिस को हम रिज़्क़-ए-इबारात नहीं कर सकते