निज़ाम-ए-फ़िक्र ने बदला ही था सवाल का रंग झलक उठा कई चेहरों से इंफ़िआल का रंग न गुल-कदों को मयस्सर न चाँद-तारों को तिरे विसाल की ख़ुश्बू तिरे जमाल का रंग ज़रा सी देर को चेहरे दमक तो जाते हैं ख़ुशी का रंग हो या हो ग़म-ओ-मलाल का रंग ज़माना अपनी कहानी सुना रहा था हमें उभर गया मगर आग़ाज़ में मआल का रंग असीर-ए-वक़्त है तो मैं हूँ वक़्त से आज़ाद तिरे उरूज से अच्छा मिरे ज़वाल का रंग बसान-ए-तख़्ता-ए-गुल मेरी फ़िक्र है आज़ाद मिसाल-ए-क़ौस-ए-कुज़ह है मिरे ख़याल का रंग