बोलेगा कौन आशिक़-ए-नादार की तरफ़ सारा ज़माना आज तो है यार की तरफ़ जिन आँख से लिया था दिल अब वो रही न आँख हैरत से देखता हूँ रुख़-ए-यार की तरफ़ दरबाँ कभी जो रोके वो नाज़ुक मिज़ाज हैं मुँह कर के सोएँ हम न दर-ए-यार की तरफ़ हारे हुए हो बोसों का कर लो अभी हिसाब फ़ाज़िल है कुछ हमारा ही सरकार की तरफ़ बैठा है कब से मुंतज़िर याँ पर निगाह-ए-मेहर देख आँख उठा के तालिब-ए-दीदार की तरफ़ पड़ती है जबकि अबरू-ए-क़ातिल पे मेरी आँख रह रह के देखता है वो तलवार की तरफ़ दाग़-ए-रिया शराब से धोने के वास्ते ज़ाहिद चला है ख़ाना-ए-ख़ु़म्मार की तरफ़ बुलबुल ने की बहार में किस यास से इक आह चाक-ए-क़फ़स से देख के गुलज़ार की तरफ़ पढ़ता हूँ फ़ातिहा मैं सू-ए-क़ब्र-ए-कोहकन होता है जब गुज़र कभी कोहसार की तरफ़ यूँ दिल पे मेरे पड़ती है आँख उस की जिस तरह जल्लाद देखता है गुनहगार की तरफ़ करता है शौक़-ए-दिल के एवज़ मोल हुस्न का दल्लाल बोलता है ख़रीदार की तरफ़ आईना साँ हूँ आमद-ए-दिलबर का हैरती रुख़ सू-ए-दर है पुश्त है दीवार की तरफ़ फूलों में ये कहाँ ख़लिश-ए-ख़ार का मज़ा जाना जुनूँ न दश्त से गुलज़ार की तरफ़ बर्बाद कर न ख़ाक मिरी ऐ हवा-ए-शौक़ ले चल उड़ा के कूचा-ए-दिल-दार की तरफ़ कौन अब करे हमारी तरफ़-दारी ऐ 'क़लक़' दिल तक है अपना अपने दिल-आज़ार की तरफ़