बे-ज़बानों को भी गोयाई सिखाना चाहिए कलिमा अंगुश्त-ए-शहादत को पढ़ाना चाहिए ख़ाल रुख़्सार-ए-मुनव्वर का दिखाना चाहिए चाँद में ऐ मेहर-वश धब्बा लगाना चाहिए तेल मेरी आँख के तिल का लगाना चाहिए गेसुओं में पंजा-ए-मिज़्गाँ का शाना चाहिए बहर-ए-ज़ीनत दामन-ए-शमशीर में ओ जंग-जू मेरी गर्दन का तुझे पट्ठा लगाना चाहिए आज-कल महव-ए-सफ़ा-ए-आरिज़-ए-दिल-दार हूँ मेरे रहने को अब आईने का ख़ाना चाहिए घाट पर तलवार के नहलाईयो मय्यत मिरी कुश्ता-ए-अबरू हूँ मैं क्या ग़ुस्ल-ख़ाना चाहिए ऐ परी है किस क़दर अड़ियल मिरा शब-देज़-ए-फ़िक्र चोटी के मज़मूँ का उस को ताज़ियाना चाहिए ताइर-ए-रंग-ए-हिना का मुर्ग़-ए-जाँ होता जलीस अब नगीने के शजर पर आशियाना चाहिए ख़त में लिक्खी है हक़ीक़त दश्त-गर्दी की अगर नामा-बर जंगली कबूतर को बनाना चाहिए जोश-ए-वहशत कह रहा है निकहत-ए-गुल की तरह आज तो दीवार-ए-गुलशन फाँद जाना चाहिए वस्फ़-ए-दंदाँ में दुर-ए-मज़मूँ की है हम को तलाश बहर-ए-फ़िक्रत में दिला ग़ोता लगाना चाहिए चीन-ए-गेसू से दिखा दो ख़ाल-ए-आरिज़ की बहार मेरे मुर्ग़-ए-रूह को ये दाम दाना चाहिए इस तमन्ना पर हुआ हूँ ख़ाक मैं ओ जंग-जू मेरी मिट्टी के तुझे मेंढे लड़ाना चाहिए आरिज़-ए-ताबाँ के क़ुल पर बहर-ए-दफ़-ए-चश्म-ए-बद ख़ाल-ए-रुख़्सार-ए-परी का काला दाना चाहिए पंजा-ए-गुलगूँ के ओ गुल हम हुए हैं अंदलीब पंज-शाख़े पर हमारा आशियाना चाहिए चल नहीं सकता हमारा तौसन-ए-उम्र-ए-रवाँ बाढ़ के डोरी का क़ातिल ताज़ियाना चाहिए बा'द मुद्दत ज़ीनत-ए-पहलू हुआ है वो परी आज तो ऐ दिल तुझे बग़लें बजाना चाहिए हूँ मैं ऐ जर्राह ज़ख़्मी तेग़-ए-नाज़-ए-यार का टाँके भी गर्दन के डोरी से लगाना चाहिए अतलस-ए-गर्दूं से अतलस है फ़ुज़ूँ ऐ माह-रू कहकशाँ का तेरे शिमले में बताना चाहिए नश्शा हैं इक बहर-ए-ख़ूबी के हमारी क़ब्र पर चादर-ए-आब-ए-रवाँ का शामियाना चाहिए मदहत-ए-साक़ी-ए-कौसर तुझ को लिखनी है 'क़लक़' पहले आब-ए-हौज़-ए-कौसर से नहाना चाहिए