ऐ 'जलीस' अब इक तुम्हीं में आदमियत हो तो हो इब्न-ए-आदम हो यही जिंस-ए-विरासत हो तो हो रह गई तन्हा ये अश्क-अफ़्शाँ हमारे हाल पर ग़म-गुसारी अपनी भी इक शम-ए-तुर्बत हो तो हो आतिश-ए-ग़म ने जला कर ख़ाक कर डाला उसे दिल कहाँ सीने में अब इक दाग़-ए-हसरत हो तो हो कारवान-ए-ज़िंदगी का लग रहा है चल चलाओ हर-नफ़स हम को सदा-ए-कूस-ए-रेहलत हो तो हो दर्द-मंदों का यहाँ कोई नहीं पुर्सान-ए-हाल ऐ अजल इन बेकसों पर तेरी रहमत हो तो हो गर्दिश-ए-दौराँ मुख़ालिफ़ है न है दुश्मन फ़लक बरसर-ए-पैकार मुझ से मेरी क़िस्मत हो तो हो आदमी वो है जिसे पास-ए-मोहब्बत हो 'जलीस' और ये शय आदमी में आदमियत हो तो हो