दास्तान-ए-शमअ' थी या क़िस्सा-ए-परवाना था अंजुमन में इश्क़ ही उन्वान हर अफ़्साना था जुस्तजू-ए-दैर-ओ-का'बा से हुआ ज़ाहिर यही मैं हक़ीक़त में ख़ुद अपनी ज़ात से बेगाना था मेरी हस्ती थी ब-ज़ात-ए-ख़ुद मुकम्मल मय-कदा मैं कभी शीशा कभी साग़र कभी पैमाना था हाए वो अय्याम-ए-तिफ़्ली हाए वो अहद-ए-शबाब ख़्वाब था जो कुछ कि देखा जो सुना अफ़्साना था बद-गुमानी से हुआ अपने पराए का गुमाँ वर्ना अपना था न दुनिया में कोई बेगाना था चश्म-ए-बीना ही न थी तेरी वगरना ऐ कलीम ज़र्रे ज़र्रे में ज़ुहूर-ए-जल्वा-ए-जानाना था महफ़िल-ए-हस्ती में देखा है यही हम ने 'जलीस' जिस को जितना होश था उतना ही वो दीवाना था