ब-रंग-ए-सब्ज़ा उन्ही साहिलों पे जम जाएँ रवाँ हुए थे जहाँ से वहीं पे थम जाएँ हम उस के पास से आएँ वजूद से भर कर प शर्त है कि वहाँ सूरत-ए-अदम जाएँ वो बे-पनाह ख़मोशी तलब करे इक बार तो बार बार नया लफ़्ज़ बन के हम जाएँ मोआमला तो ये फ़ौरी अमल का है फिर भी मिरी सुनें तो अभी थोड़ी देर थम जाएँ फ़राख़ दिल है बहुत वो मगर मियाँ-'एहसास' ज़ियादा मिलता है उतना ही जितना कम जाएँ