थी चाल हश्र में भी क़यामत हुज़ूर की सच पूछिए तो झेंप गई आँख हूर की सच है कि राज़-ए-वस्ल छुपाना नहीं है सहल मैं क्या कहूँ जो कहती है चितवन हुज़ूर की जाने से दिल के क्यूँ न हो वीरान बज़्म-ए-ऐश शब भर इसी से रहती थी बातें हुज़ूर की ग़श आज आ गया है ख़ुदा जाने कल हो क्या मूसा अब और सैर करो कोह-ए-तूर की जन्नत में पूछते हुए 'जावेद' हम चले दूकान किस तरफ़ है शराब-ए-तहूर की