ब-रोज़-ए-हश्र मिरा एहतिसाब क्या होगा कि इस ज़मीं के सिवा और अज़ाब क्या होगा मुदाम फ़िक्र में बे-अक़्ल का तसलसुल-ए-कार किताब-ए-ज़ीस्त का आइंदा बाब क्या होगा जवाँ दिलों में फ़क़त नफ़रतें ही मिलती हैं ज़ियादा इस से कोई इंक़लाब क्या होगा अता किया मह-ए-कामिल को इशरतों का ग़ुरूर अँधेरी रात से बढ़ कर अज़ाब क्या होगा तिलिस्म-ए-कैफ़-ओ-नज़र मुद्दआ'-ए-बे-ख़बरी तिलिस्म-ए-होश-ओ-ख़िरद का निसाब क्या होगा गुनाहगार नज़र भी है दिल की धड़कन भी वो पूछ लेंगे तो मेरा जवाब क्या होगा ब-फ़ैज़-ए-जुरअत-ए-रिंदाना देखना तो 'अनीस' अदा-शनासों का तुझ पर इताब क्या होगा