रोने का सलीक़ा मुझे अस्लाफ़ ने बख़्शा ये मातमी आँखें मुझे विर्से में मिली हैं ये कर्ब की दुनिया का है नक़्शा इसे देखो सब पुरखें हमारी इसी शजरे में मिली हैं मैं घूर के देखूँ तो बुरा मानता है वो कैसे कहूँ ये तल्ख़ियाँ तर्के में मिली हैं ख़्वाबों ने भी मरने की ही ठानी है बिल-आख़िर दो चार की लाशें मिरे कमरे में मिली हैं टूटे हुए रस्तों पे तिरा हाथ पकड़ लूँ ये ख़्वाहिशें बस इश्क़ के बदले में मिली हैं जो लड़कियाँ जीती थीं मोहब्बत के सहारे दो गज़ की ही क़ब्रें उन्हें तोहफ़े में मिली हैं