बू-ए-गुल रंग-ए-हिना नाज़-ए-नसीम-ए-सहरी तिरे अफ़्सूँ की सब ऐ दोस्त है अफ़्साना-गरी एक ही हाल पे क़ाएम है अज़ल से अब तक हुस्न की इश्वा-गरी इश्क़ की शोरीदा-सरी जाने वाले तो सितारों से परे जा पहुँचे अहल-ए-महफ़िल लिए बैठे रहे शीशे की परी अब कोई फ़र्क़ नहीं इन में ख़ज़फ़ हों कि गुहर हाए ऐ अहद-ए-बसीरत ये तिरी बे-बसरी कितने मजरूह हैं इस दौर में एहसास-ओ-शुऊ'र कितनी मज़लूम है इस अह्द में बालिग़-नज़री तुझ को ऐ दोस्त 'वफ़ा' याद रहे या न रहे हाँ मगर याद रहेगी मिरी वीराँ-नज़री