हर एक आँख को ज़ौक़-ए-जमाल दे या-रब दिलों को इश्क़-ओ-वफ़ा का जलाल दे या-रब है मेरे ज़ेहन-ए-रसा में जो इक तसव्वुर-ए-हक़ मिरा क़लम उसी साँचे में ढाल दे या-रब ज़बाँ से बात जो निकले हमेशा हक़ निकले लिसान-ए-सिद्क़ को हुस्न-ए-मक़ाल दे या-रब इस अह्द-ए-ज़ोर में इस का सँभलना मुश्किल है तू ही शरीफ़ों की पगड़ी सँभाल दे या-रब खटक रहा है दिलों में मिरे हरीफ़ों के बहुत दिनों से जो काँटा निकाल दे या-रब नफ़स में गर्मी-ए-ईमान-ए-बूज़र-ओ-सलमाँ दिलों में सोज़-ए-उवेस-ओ-बिलाल दे या-रब जो ख़्वाहिशों में घिरा हो वो तुझ से क्या माँगे तुझे जो देना है वो बे-सवाल दे या-रब