बू-ए-पैराहन-ए-सदा आए खिड़कियाँ खोल दो हवा आए मंज़िलें अपने नाम हों मंसूब अपनी जानिब भी रास्ता आए जलते बुझते चराग़ सा दिल में आरज़ूओं का सिलसिला आए ख़ामुशी लफ़्ज़ लफ़्ज़ फैली थी बे-ज़बानी में कुछ सुना आए डूब कर उन उदास आँखों में इक जहान-ए-तरब लुटा आए दिल में रह रह के इक ख़लिश उठ्ठे बे-सबब इक ख़याल सा आए