ज़मीन पर न रहे आसमाँ को छोड़ दिया तुम्हारे ब'अद ज़मान ओ मकाँ को छोड़ दिया तबाह कर गया इक लम्हा-ए-ख़राब मुझे कि मैं ने हल्क़ा-ए-आवारगाँ को छोड़ दिया कहीं पनाह नहीं मिलती लम्हा भर के लिए कि जब से महफ़िल-ए-दिल-दादगाँ को छोड़ दिया बस एक कुंज-ए-ख़स-ओ-ख़ाक में सुकून मिला सो मैं ने हल्क़ा-ए-सय्यारगाँ को छोड़ दिया तुम्हारे ब'अद गुज़िश्ता रहा न हाल रहा सो दिल ने ख़दशा-ए-आइंदगाँ को छोड़ दिया