बुझ गए सारे माहताब तिरे अब कहाँ हैं वो आफ़्ताब तिरे पैदा होते ही पर निकल आए देख दिन आएँगे ख़राब तिरे तुझ से नफ़रत की इंतिहा है ये सोने देते नहीं हैं ख़्वाब तिरे ख़ुद को लगने न दूँ कोई काँटा तेरे हाथों से लूँ गुलाब तिरे तेरे चेहरे पे पोत दी कालक मेरी ठोकर पे सब अज़ाब तिरे अब तो ख़ुश है कि पहली फ़ुर्सत में तुझ को लौटा दिए जवाब तिरे