बुझे हो, हाथ मायूसी लगी है क्या दर-ए-उल्फ़त पे अब कुंडी लगी है क्या अभी भी तुझ दर-ए-दिल पर बता जानाँ हमारे नाम की तख़्ती लगी है क्या समुंदर बौखलाया फिर रहा है क्यूँ किनारे फिर कोई कश्ती लगी है क्या हमीं तुम से हमेशा मिलने आएँ क्यूँ तुम्हारे पाँव में मेहंदी लगी है क्या कटे हैं पर तो कटने दो मियाँ सोचो इरादों पर कोई क़ैंची लगी है क्या जहाँ कल इश्क़ पर चर्चा हुआ घंटों वहीं अब हुस्न की मंडी लगी है क्या हैं आँखें सुर्ख़ लब ज़ख़्मी अना घायल तिरे किरदार की बोली लगी है क्या तिरी गलियों से जो गुज़रा उसे जानाँ भला दुनिया कभी अच्छी लगी है क्या यक़ीनन आज बे-पर्दा वो निकले हैं वगरना चाँदनी फीकी लगी है क्या न दुनिया है न उलझन है सुकूँ है बस ठिकाने अब मिरी मिट्टी लगी है क्या किताबें घर मिरे सूरज सी रौशन हैं तिरे कमरे में ये बत्ती लगी है क्या ज़बाँ से आह क्या उफ़ तक नहीं निकली तो अब के चोट कुछ गहरी लगी है क्या मिटा लोगे जिहालत को 'सिकंदर' तुम तुम्हें भी ये नई धुनकी लगी है क्या