बुलंदियों पे ज़माने है क्या किया जाए हमें भी चाँद पे जाना है क्या किया जाए वो जिस के सामने खुलते नहीं हैं लब मेरे उसी को शे'र सुनाना है क्या किया जाए हवस की ज़द पे तड़पती सिसकती दुनिया में वक़ार अपना बचाना है क्या किया जाए निकल पड़ा है कोई घर से बिजलियाँ ले कर मिरा चमन ही निशाना है क्या किया जाए बहार से ही डरे बैठे हैं चमन वाले अभी ख़िज़ाँ को भी आना है क्या किया जाए