बुलंद-ओ-पस्त का हर-दम ख़याल रखना है हमेशा हाथ में कार-ए-मुहाल रखना है वो मुझ से तालिब-ए-बैअ'त हुआ है और मुझे जुनूँ के हाथ पे दस्त-ए-सवाल रखना है कोई तो आ के गिनेगा जराहतें दिल की हरा-भरा हमें ताक़-ए-मलाल रखना है मिरे चराग़ की लौ से मुसाबक़त कैसी मुझे उसी पे उरूज-ओ-ज़वाल रखना है कहीं तो ख़त्म हुआ होगा रात का अफ़्सूँ वहीं पे उक़्दा-ए-सुब्ह-ए-विसाल रखना है शिकस्त-ए-बे-हुनरी की सनद नहीं मिलती गिरफ़्त में अभी किल्क-ए-कमाल रखना है वो मेहरबान नहीं है तो फिर ख़फ़ा होगा कोई तो राब्ता उस को बहाल रखना है बजाए उस के कि हम बे-हिसों में गिन लिए जाएँ सुख़न के साथ ही हुस्न-ए-मजाल रखना है नज़र न आए क़लम-रौ में कोई हर्फ़-ए-जुनूँ तमाम ज़ेर-ओ-ज़बर पाएमाल रखना है